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लव इज़ डिवाइन

लव इज़ डिवाइन

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प्रेम

प्रेम होता है बस प्रेम

आत्मिक जुड़ाव

और

वासना से दूर...

क्योंकि जहाँ वासना है

वहाँ प्रेम हो ही नहीं सकता

प्रेम तो पारदर्शी है

जिससे आर-पार

हर भावना की सच्चाई

साफ-साफ दिखती है...

प्रेम की परिभाषा

नहीं होती

प्रेम, प्रेम होता है

प्रेम को शब्दों में

नहीं बयां किया जाता सकता

प्रेम को नियमों में

नहीं बांधा जा सकता

प्रेम जाति धर्म से परे है...

प्रेम छोटा-बड़ा नहीं देखता

ऊंच-नीच नहीं समझता

उम्र का लिहाज़ नहीं करता

सच्चा प्रेम देह का

मोहताज नहीं होता..

और जहां

शर्तें होती हैं

नियम होते हैं

वहाँ प्रेम

सच्चा होता ही नहीं

क्योंकि

प्रेम हवा का निश्छल झोंका है

जिसे नियमों में बांधना

किसी मासूम तितली को

कुचलने जैसा है...

प्रेम पाने का नाम नहीं

प्रेम निभाने का नाम है

जैसे राधा-कृष्ण ने निभाया

जहाँ हासिल की तृष्णा हो

वहाँ प्रेम कहाँ...

प्रेम तो प्रेम है

जो ह्रदय को हल्का कर देता है

एक पक्षी के पर जैसा

और

भारी कर देता है

व्यक्तित्व को

सच्चा प्रेम कर पाना

और सच्चा प्रेम पाना   

हर किसी के नसीब में नहीं

हर किसी के वश में नहीं...

क्योंकि 

अलौकिक ऊर्जा है...

प्रेम दैवीय है...


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