वृक्षदेव
वृक्षदेव


हे वृक्षदेव!
जीवनदाता
हम अंतस से
नतमस्तक हैं
तुमने हमको सौंपा जीवन
दे प्राणवायु उपहार दिया
हमने तुम को दुख पहुँचाया
हरदम सीने पर वार किया
हम क्षमा माँग लें
किस मुख से
हे क्षमाशील !
हम विस्मित हैं
तुम सदियों से सहते आए
क्यों नहीं कभी प्रतिकार किया
जो हमने विष फैलाया सब
सोखा तुमने उपकार किया
तुम को इस धरती
पर पाकर
हे धरा ईश!
हम उपकृत हैं
सुदृढ बलशाली होकर भी
क्यों मौन बने तुम रहे सदा
चोटिल तन बिंधित मन लेकर
तुम तो मुस्काते रहे सदा
अपने कर्मों पर
अडिग रहे
हे तरु! तव नेह
असीमित हैं
हम मनुज कुटिल विषधर जैसे
अति मूढ़ किंतु उदंडी हैं
जिसने पाला-पोसा सुतवत
उसको दें पीर घमंडी हैं
फिर भी हमको
दुलराया है
हे शाखी !मनुज
चमत्कृत हैं
काटा नोचा मनचाहे जब
जब चाहे जैसे तोड़ दिया
जितना भी तुम दे सकते थे
लेकर मरने को छोड़ दिया
शर्मिंदा हैं हम
नीच अधम
हे अगम!आज
हम लज्जित हैं
हे वृक्षदेव!
जीवनदाता
हम अंतस से
नतमस्तक हैं।
हे वृक्षदेव हम लज्जित हैं, ये क्षमापत्र स्वीकार करो
हम मूढ़ कृतघ्नों को, हे तरु! ले चरणों में उद्धार करो