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Ankita kulshrestha

Abstract

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Ankita kulshrestha

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सहमा उपवन

सहमा उपवन

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सहमा उपवन छाया कुहास

अलि मौन शांत बीता सुहास

कलिओं के बीच सहमी तितली 

किसलिए पीर क्यों जग उदास..


आगंतुक न कोई आया न गया

किसलिए शुष्क व्यवहार नया

क्यों धरा हृदय रोया जर्जर

क्यों निशा दिखे अति घोर निडर

जगती का निर्बल भाल हुआ


क्यों लगे सहस सब व्यर्थ प्रयास

किसलिए पीर क्यों जग उदास..

सहमा उपवन छाया कुहास..


क्यों छिन्न-भिन्न गरिमा सिसके

सम्बंधों के दीपक ठिठके

बुझती लौ रिश्ते-नातों की

भावों के झँझावातों की

किस रक्त से अंबर लाल हुआ


उजले दिन से हो तम का भास

किसलिए पीर क्यों जग उदास..

सहमा उपवन छाया कुहास..


पुहुपों को मसला जाता है

छिपता क्यों आज विधाता है

क्यों देख असुर नर्तन भीषण

क्यों देख रुदन पीड़ा शोषण

नहीं फिर से क्यों अवतार हुआ


हे ईश्वर तेरा ये उपहास

किसलिए पीर क्यों जग उदास..

सहमा उपवन छाया कुहास!



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