मैं विभा हूँ
मैं विभा हूँ
चीरकर सीना तिमिर का
खोल बंधन रोशनी के
मैं अटल कर्तव्य पथ पर बढ़ रही हूँ
मैं धरा पर शीत शोभित चंद्रिका हूँ
मैं विभा हूँ...
मैं गरल भी युग युगों से पी रही हूँ
दीप आशा का जलाकर जी रही हूँ
पुष्प या कंटक मिलें अविचल सदा मैं
हूँ अपरिमित किंतु सीमित भी रही हूँ
भाल पर नभ के सजी मैं शोभिता हूँ
मैं विभा हूँ....
हाँ अमावस ने कभी फेरा लगाया
या ग्रहण ने राह में डेरा जमाया
एक क्षण ठिठकी मगर फिर चल पड़ी मैं
कौन सा अवरोध मुझको रोक पाया
मैं मधुर ,पावन ,सुमंगल गीतिका हूँ
मैं विभा हूँ....
है हृदय कोमल विचारों से मगर चट्टान हूँ
शांत हूँ सरि सी कभी विप्लव सघन प्रतिमान हूँ
हो तिमिर कितना घनेरा टिक नहीं पाता कभी
पुष्प सी निश्छल अधर पर मैं खिली मुस्कान हूँ
प्रेम, ममता से भरी सुरभित सरस मैं प्रीतिका हूँ
मैं विभा हूँ...।