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Suresh Koundal 'Shreyas'

Abstract Romance

4  

Suresh Koundal 'Shreyas'

Abstract Romance

सूखा गुलाब

सूखा गुलाब

2 mins
362


किताब में दबे सूखे गुलाब को देख

वो दौर सुहाना याद आता है।

वो दिलकश जवानी के थे लम्हे

वो हसीन ज़माना याद आता है।।


राह में उनके दीदार की तलब में 

दरख्तों के नीचे गुज़ारे वो हसीं लम्हे

पास से गुज़र जाना फिर पलट कर देखना

फिर उनका नज़रें चुराना याद आता है….”

वो दिलकश जवानी के थे लम्हे

वो हसीन ज़माना याद आता है।।


उनकी तस्वीर सिरहाने रख कर

उस से बातें करना और बातें बनाना

फिर तस्वीर सीने से लगाना याद आता है

नींद गवाई चैन भी खोया


वो रातों को उठ उठ कर चलना

कभी बैठ आंसू बहाना याद आता है 

वो दिलकश जवानी के थे लम्हे

वो हसीन ज़माना याद आता है।।


कशमकश में गुज़रे कई लम्हात कि

कैसे हाल ए दिल सुनाऊं उसको

है कितनी मुहब्बत मुझे उससे

कैसे जा कर ये सब बताऊं उसको

कागज़ पर लिख दर्दे दिल बयां करना

फिर लिख कर मिटाना याद आता है

वो दिलकश जवानी के थे लम्हे

वो हसीन ज़माना याद आता है।


सहेलियों के झुरमुट से हर रोज़

ताकती थी मुझे वो छुप छुप कर

तिरछे नयनो से घायल दिल

धड़कता था पर रुक रुक कर


इशारा नज़रों से मिलने का किया मैंने 

पर उसका हर बार बहाने बनाना याद आता है 

वो दिलकश जवानी के थे लम्हे

वो हसीन ज़माना याद आता है।।


मुझे मालूम था अब दिल में उसके बस गया हूँ मैं

मूसकुराहटें बयां करती कि उसको जच गया हूँ मैं

पकड़ कर हाथ प्यार का इज़हरार कर दिया मैंने

जो कुछ भी दिल में था वो सब कुछ पढ़ दिया मैंने


बोल कर हाँ नज़ाकत से फिर शरमा दिया उसने

दे हाथ में गुलाब गीत प्यार का गुनगुना दिया उसने

वो उसके प्यार का मधुर तराना याद आता है।

वो दिलकश जवानी के थे लम्हे

वो हसीन ज़माना याद आता है।।


किताब में दबे सूखे गुलाब को देख

वो दौर सुहाना याद आता है।

वो दिलकश जवानी के थे लम्हे

वो हसीन ज़माना याद आता है।।


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