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Pt. sanjay kumar shukla

Abstract

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Pt. sanjay kumar shukla

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मन ख्वाबों के चरणों में

मन ख्वाबों के चरणों में

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कभी मेरी रूह कांपती है,

ये सोच कर कि,

मरने के बाद मै कहाँ रहूंगा ?

किसके साथ रहूंगा?

क्या मिलेंगे मुझे वहां कोई दोस्त? 

य तन्हा किसी सुनसान अंधेर नगरी

मैं घूमता रहूंगा ।

क्या होंगे कोई मेरे हित ?

क्या मिलेंगी मुझे कोई मीत?

क्या वहां मेरी मां मेरे पापा मिलेंगे?

य क्या वहां भी नव जन्म लेना होगा ? 

डर से दर्द होती हैं दिल में,

जब ढूंढता हूं इन प्रश्नों का उत्तर।

मन विचलित भयभीत मन,

कोई रोको इन्हे 

हे राम! हे शिव शंकर!

हे जग के निर्माता!

कर संकट दूर मेरी दे मेरा प्रश्नोत्तर ।।



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