सफर 2020
सफर 2020
(१)
जनता में अब महामारी,
फैल रही थी मंद मंद ।
गरीब रहा या उद्योगपति,
सबको संकट की मिल चुकी थी गंद ।।
(२)
ना जाने कैसी हवा चली थी,
हवे में जहर इस तरह फैली थी ।
उसके जंजीरों में जकड़ चुके थे लोग,
सुनकर कोरॉना के नाम काप रहे थे सब लोग ।।
(३)
अद्भुत कला थी उनमें,
सांसो की नली को बंद करने की ।
अपनों से भी डर लगने लगा था,
मिलकर उनसे मरने की ।।
(४)
अदृश्य महाशक्तिशाली,
जैसे कि २०२० को जन्म लिया हो बाली ।
पूरी दुनिया निहत्था ; खड़ी रो रही थी,
पढ़ चुकी थी बड़ी-बड़ी नेताओं के चेहरे में लाली ।।
(५)
चीनियों की काली करतूतों का,
भोग रहे थे हम सब लोग उन कुपूतों का ।
खुद के घरों में बंदी हो गई थी सारी जनता,
शोक में डूब चुकी थी दुनिया,
मानो लग रहा था अब संसार रहेंगी भूतों का ।।
(६)
रोटी के लिए गरीब लोग,
हो गए थे प्रवासी माहानगरों में ।
कॉरोना से प्राण बचाने के वास्ते,
पैदल ही लौट चले थे घरों में ।।
