बसंत बहार
बसंत बहार
(१)
ऐ बसंत बड़े दिनों बाद आया है,
हम लोगों के लिए ढेर सारा प्यार लाया है।
दे आई तूने फलो के राजा को आने की दावत,
वृक्षों को नई नवेली दुल्हन सी
नवरंग से सजाने को आई पतझड़ लावत।
इन दिनों इस पल,
मैं झूम उठा हूं !
और चूम लिया हूं इन हवाओं को,
नवल दल की आगमन का,
मैं अभिनंदन करता हूं ।
(२)
ऐ रूत हमारे प्रेम की,
बरसो से आती जाती है।
भोर - भोर में कोयल पपीहा,
अमर गीत सुनाती है।।
ऐ फिजाओं तेरी सुंदर छवि का,
मैं अभिनंदन करता हूं।
(३)
नववर्ष चैत्र के प्रारंभ काल में,
तू नित्य सुर्खियों में है।
नदी- नालों, पर्वत की चोटियों से है,
तू आ रही अंदर खिड़कियों से है।
तेरी इस नटखट अदाओं को,
मैं अभिनंदन करता हूं ।
