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Pt. sanjay kumar shukla

Abstract Fantasy

4.5  

Pt. sanjay kumar shukla

Abstract Fantasy

" मिट्टी - मेरे अनमोल रत्न "

" मिट्टी - मेरे अनमोल रत्न "

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(१) मैं हूं एक कुम्हार,

जो मिट्टी के रचनाकार।

चाक पर गोल घुमा घुमा कर,

पहनाता हूं उसको सुंदर हार ।।

(२) जिस तरह से मिट्टी की विकार को,

निकाल फेंकता हूं बाहर।

वैसे ही अपनी पेट की पीड़ा को,

रखता मैं कहीं दूर हूं बाहर ।।

(३) हमने भी कुछ सपने,

बुन कर रखे थे मिट्टी के संग।

सुखद जीवन की आस में,

लड़ रहे हैं बाजारों में जाकर जंग ।।

(४) मैं पिलाता हूं सबको,

शीतल सुराही की जल।

तप रहा हमारा पूरा अंग,

हृदय मेरा अशीतल पल पल ।।

(५) हम कुम्हारों की यहां कीमत शून्य,

संवारने में लगा हूं अपनी बच्चों की कल ।

बड़े विचार बड़ी सोच बड़ी उम्मीदों,

के संग चल रहा हूं हर पल ।।

(६) मेरी मेहनत की कोई मोल नहीं,

कोई रंग नहीं मेरे जीवन का ।

मेरी मिट्टी की इस कला का कोई मान नहीं,

गरीबी जंग बनी मेरी जीवन का ।।

(७) एक वस्त्र मटमैला सा धोती में,

निहारता इस दुनिया की रंगमंच को ।

मैं हाथ जोड़कर विनती करता,

छिति, जल, पावक, गगन, समीरा इस पंच को ।।

(९) हर मेरी पीड़ा को,

हे जल! भीगा कर

मुझको अपनी जल से कर

दे पावन जीवन तू मेरा ।

हे पावक! मुझे अपनी आगोश में कर ले,

कर स्वीकार जीवन तू मेरा ।।



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