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Pt. sanjay kumar shukla

Classics Fantasy Children

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Pt. sanjay kumar shukla

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ग्रीष्म दर्पण

ग्रीष्म दर्पण

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     (१)

लगी चैत के माह,

नटखट रवि हुई बावरी।

करत स्वयं को दाह,

सुखाती अरण्य, फुलवारी।।      

       (२)

कड़ी धूप सूखी नदियां और,

गर्मी लिए है, आलसी।

फैल चुकी है लू चमन में,

बनकर आई कालसी।।


कड़ी धूप में उठती बवंडर,

करती पवन हो नित्य।

सूखी तलाब, फटी खेत है,

हरियाली है मृत्य।।           

          (३) 

अग्नि की किरणों से,

करता जीवो पर वार।

जल -जला -जल के तन,

बह रहा अवरक्त धार।। 

        (४)

कंकड़ तप कर बना अंगारा,

धूल बना है भाभूत।

जीव जंतु भी चिंतित है,

देखकर कला अद्भुत।।     


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