समझौता
समझौता
दोनों में तय हुआ था ,
एक को घर सम्हालना था,
दूसरे को बाहर का देखना था ,
दोनों ने इसे स्वीकार किया ,
साथ सफर आरंभ किया ,
क्यूंकि तब वहां प्यार और सम्मान था।
उसने अच्छे से घर सम्हाला ,
अपने को बुद्धि बल में श्रेष्ठ समझता ,
वह अपने को स्वामी मानने लगा ,
घर का भी और उसका भी ,
उसकी ज़िंदगी खुद पर निर्भर जानने लगा ,
अब वहां सिर्फ प्रभुत्व और अहंकार था।
उसने जब भी कुछ कहना चाहा ,
मेरे घर में मेरे तरीके से रहो ,
कहकर उसे खामोश कर दिया ,
हमारा घर कब मेरा हो गया ,
उसे कभी ये समझ नहीं आया ,
अब वहां हम नहीं सिर्फ मैं था।
तयशुदा पीछे छूटने लगा ,
उसकी कोशिशों को अहंकार निगल गया ,
उसने भी घर के साथ बाहर का देखना शुरू किया ,
लेकिन वह अभी भी घर नहीं सम्हालता ,
बाहर जाती उस पर कई तोहमतें लगाता,
अब वहां एक नया आरम्भ लाजिमी था।
