STORYMIRROR

Priyanka Gupta

Abstract

4  

Priyanka Gupta

Abstract

समझौता

समझौता

1 min
221

दोनों में तय हुआ था ,

एक को घर सम्हालना था,

दूसरे को बाहर का देखना था ,

दोनों ने इसे स्वीकार किया ,

साथ सफर आरंभ किया ,

क्यूंकि तब वहां प्यार और सम्मान था।


उसने अच्छे से घर सम्हाला ,

अपने को बुद्धि बल में श्रेष्ठ समझता ,

वह अपने को स्वामी मानने लगा ,

घर का भी और उसका भी ,

उसकी ज़िंदगी खुद पर निर्भर जानने लगा ,

अब वहां सिर्फ प्रभुत्व और अहंकार था।


उसने जब भी कुछ कहना चाहा ,

मेरे घर में मेरे तरीके से रहो ,

कहकर उसे खामोश कर दिया ,

हमारा घर कब मेरा हो गया ,

उसे कभी ये समझ नहीं आया ,

अब वहां हम नहीं सिर्फ मैं था।


तयशुदा पीछे छूटने लगा ,

उसकी कोशिशों को अहंकार निगल गया ,

उसने भी घर के साथ बाहर का देखना शुरू किया ,

लेकिन वह अभी भी घर नहीं सम्हालता ,

बाहर जाती उस पर कई तोहमतें लगाता,

अब वहां एक नया आरम्भ लाजिमी था। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract