मंजिल
मंजिल
एक मंजिल की तलाश में कुछ दूर चला आया हूँ मैं
एक ख़ुशी की तलाश में कुछ आगे निकल आया हूँ मैं!
धुंधली सी एक तस्वीर का क्यों पीछा कर रहा हूँ मैं
ना जाने किससे दूर भाग रहा हूँ मैं!
यूं तो न जाने क्यों कितने चेरे हैं इस मंजिल के
पर न जाने कौन सा पाना चाहता हूँ मैं!
यह नहीं समझ पा राहा की खुदसे दूर या खुद के पास आरहा हूँ मैं,
पर इतना तो ज़रूर समझ गया की एक सफ़र पर चल पड़ा हूँ मैं!
ना हैं मुझे मंजिल का पता न मालूम कोई राहा,
पर फिर भी चलता ही जा राहा हूँ मैं!
क्यों निकला हूँ मैं ऐसे बेराहा सफ़र पर
क्या पाने की कोशिश कर रहा हूँ मैं!
शायद येही वोह सवाल हैं जिसकी तालाश में चल पड़ा हूँ मैं,
पर यह सवाल ही मेरी मंजिल का सफ़र!
क्योंकि जिसकी मुझे तलाश हैं वोह शायाद मेरी ही भीतर का सच है,
जिसे समझने कही निकल पड़ा हूँ मैं!
यह सच है मेरी परीक्षा जिसका परिणाम है मेरा अंत
पर शायाद उसी अंत की तलाश में आगे बढ़ा जा रहा हूँ मैं!
