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Dr Priyank Prakhar

Abstract

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Dr Priyank Prakhar

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आंखें थोड़ा ज्यादा नम हुंई

आंखें थोड़ा ज्यादा नम हुंई

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अब के इस सावन में, बारिश थोड़ी कम हुई, 

क्योंकि इस बार, आंखें थोड़ा ज्यादा नम हुईं।


चलते ही रहे हम, दूरियां फिर भी ना कम हुई,

क्योंकि इस राह आंखें, थोड़ा ज्यादा नम हुईं।


बिछड़े मिले बरसों में, नामालूम बातें कम हुई,

क्योंकि हर ओर, आंखें थोड़ा ज्यादा नम हुईं।


जला दिया रात भर, बूंद तेल की ना कम हुई,

क्योंकि उस रात, आंखें थोड़ा ज्यादा नम हुईं।


जानते थे कब से, पहचान तो तब भी कम हुई,

क्योंकि उनके साथ, आंखें थोड़ा ज़्यादा नम हुईं।


रहे जमाने के बीच, तन्हाई कभी ना कम हुई,

क्योंकि हर बार, आंखें थोड़ा ज्यादा नम हुईं।


जुदा थे हम पर, तड़पन तब भी तो कम हुई,

क्योंकि हमारी आंखें, थोड़ा ज्यादा नम हुईं।


रहा दरिया किनारे, प्यास तब भी ना कम हुई, 

क्योंकि ताउम्र, ये आंखें थोड़ा ज्यादा नम हुई।


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