हर तन-मन तिरंगा
हर तन-मन तिरंगा
जरा गौर करो, ये आजादी कैसे हमको मिल पाई है,
किसने-क्या, कैसे, कितनी कीमत इसकी चुकाई है,
कितनों ने लाठी, कितनों ने सीनों पे गोली खाई है,
इसी तिरंगे झण्डे पे, कितने वीरों ने जान लुटाई है।
निडर वो झूल गए बलि-वेदी पे, अब बारी हमारी है,
आज़ादी की खातिर कुर्बानी में, करनी साझेदारी है,
शान ना इसकी जाने पाए, हम सबकी ज़िम्मेदारी है,
झंडा ऊंचा सदा रहे हमारा, करनी इसकी तैयारी है।
छूत-पात, भेदभाव का, दावानल आज बुझाना है,
शौर्य, शांति व समृद्धि का, तिरंगा अब लहराना है,
जश्न आजादी का नहीं, स्व-अभिमान का मनाना है,
नव जागृत भारत है, ये अब दुनिया को बतलाना है।
ना पंजाबी, ना मराठी, बस भारतवासी कहलाना है,
रंग-बिरंगे फूलों को, जुड़ माला में एक बन जाना है,
आजादी के वीरों का स्वप्न, सच्चा साकार बनाना है,
बस हर घर नहीं, हर तन-मन में तिरंगा फहराना है।