अवकाश नहीं उत्सव हो हर बार
अवकाश नहीं उत्सव हो हर बार


वो झूले फांसी को बना गले का हार,
सहके लाठी, डंडे, कंटक और कटार,
कर सर्वस्व निछावर दिया हमें उपहार,
याद रखो अवकाश नहीं उत्सव हो हर बार।
धड़कनें सीने में करें शोलों सी धबकार,
बारिश में पड़ते ओलों सा हो चीत्कार,
सीने की हद से निकलने को हों तैय्यार,
ऐसा मनाओ मतवालों का यह त्योहार।
ढोल बजे, जश्न मने सारी हदों के पार,
क्या जल, थल, नभ गूंजे हर विस्तार,
ईद दिवाली क्रिसमस का छोड़ इंतजार,
सब मनाएं गणतंत्र का पावन त्यौहार।
बसा तिरंगा दिल में, करते हैं हम वादा,
करके मजबूत इरादा, हो मजबूत इरादा,
मिल-जुल कर, साथ में आगे बढ़ने का,
थामे अपने हाथों में, आजादी का धागा।
लहराए सबसे ऊंचा, यह परचम अपना,
हम सबका हो बस, यह एक ही सपना,
धरती से नभ तक बस हो ये ही गुंजार,
एक है भारत, एक ही भारत, भारत की जै जैकार।
जै भारती, जै भारती, भारत की जैकार।
याद रखो अवकाश नहीं उत्सव हो हर बार।