एक ख़्वाब
एक ख़्वाब
बंद आँखों से एक ख्वाब देखता हूँ,
ख्वाब में तुझे अपना देखता हूँ!
दूर तक अंधकार देखता हूँ,
उसमे से एक रोशनी की किरण देखता हूँ!
दिल में अरमानों के खजाने देखता हूँ,
पर हर खजाने पे बेबसियों के ताले देखता हूँ!
क्यों हो रही हैं ऐसी ना उम्मीद ज़िंदगी,
जब हर रोज़ सबको खुश देखता हूँ!
आँखों में हैं लाखों ख्वाब,
पर हर ख्वाब में खुद को अधूरा देखता हूँ!
हारना में चाहता नहीं,
जीत में पाता नहीं,ऐसी बेबसी से क्यों खुद को झुझता देखता हूँ!
क्यों ना छोड कर इन बातों को एक ओर,
जिऊँ बनके पतंग बिना डोर!
उड़ता रहूं उस रोशनी की ओर,
छोड़ हार जीत को एक छोर!
अब से खुद को जीना चाहता हूँ मैं,
हार के गम से, जीत की खुशी नही खोना चाहता हूँ मैं!
ज़िंदगी एक जंग नहीं, बल्कि एक कविता हैं,
जहाँ हर रोज़ मानो एक पल हो,
हर पल में लाखों मुस्कुराहट हो,
हर मुस्कुराहट का एक लम्हा हो,
उन लम्हो को जीतना चाहता हूँ मैं!
बंद आखों के उस ख्वाब को अब हक़ीक़त करना चाहता हूँ मैं!
इन लम्हों को अब अपना बनाना चाहता हूँ मैं!