STORYMIRROR

अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract Inspirational

4  

अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract Inspirational

कोरा कागज

कोरा कागज

1 min
255

मैं देख रहा था कोरे कागज में कोई कोण, 

ढूंढ रहा था धवल पृष्ठ पर कोई मोड़,

जिसमें मुड़ कर खुद खुद में मुड़ जाऊं मैं,

सोच रहा था कविता एक बनाऊं मैं।।


मैं देख रहा था बनते मिटते चित्रों को, 

ढूंढ रहा था, भाई बहिन और मित्रों को,

जिनके चेहरे की कोमलता को गाउँ मैं,

मन्द हास की कविता सा मुस्काऊ मैं,


मैं देख रहा था खुद अपनी ही छाया को,

कभी देख रहा था अन्धकार की काया को,

जिसमें छुपकर एक दीपक सा जल जाऊं मैं, 

मद्धिम प्रकाश सी कविता एक जलाऊं मैं।


मैं देख रहा था कागज में अपने मन को,

जैसे समझ रहा था टिक-टिक करते जीवन को,

सद्कार्यों को तन-मन सब दे जाऊं मैं,

काली स्याही से श्वेत पत्र रंग जाऊं मैं।

हां सोच रहा था कविता एक बनाऊं मैं।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract