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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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याद का कर्ज

याद का कर्ज

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जिन्दगी जी रहा हूँ यादों के सहारे,

कुछ अपनों की यादें, 

कुछ सुख दुःख की फरियादें।


जब भी होता हूँ अकेला कभी 

तब ये यादें ही होती हैं मेरी जीवन साथी।

अगर ये यादें न होती तो,

शायद जिन्दगी कुछ और ही होती,

शायद मेरा वजूद ही न होता।


डूबा हूँ इन यादों के अथाह क़र्ज़ में।

जब भी खोलता हूँ यादों का पिटारा,

मेरा पूरा बचपन हो उठता है परिभाषित।

जैसे आँखों के सामने चल रहा हो कोई चलचित्र,

और मैं उस चलचित्र का एक अहम् किरदार।


तब जी लेता हूँ मैं हर वह बीता लम्हा,

जिसने बना दिया मुझे कहीं न कहीं क़र्जदार। 

सोचता हूँ कैसे यह कर्ज़ चुका पाऊँ,

कैसे इस कर्ज़ से मैं छुटकारा पा जाऊँ।


कर्ज़दार हूँ मैं हर उस रिश्ते का,

जिसने मुझे दिया अपनेपन का अहसास।

कर्ज़दार हूँ मैं हर उस हमराही का,

जिसने दिया मंजिल की ओर बढ़ने का विश्वास।


कर्ज़दार हूँ हर उस ठोंकर का,

जिसने मुझे जिन्दगी में संभलना सिखाया।

कर्ज़दार हूँ मैं मेरी सभी यादों का,

जो आज बन गई हैं मेरा हमसाया।


और मैं चलना चाहता हूँ आगे की ओर,

इन्हीं यादों के कर्ज़ के साथ, 

पाना चाहता हूँ मेरी मंजिल का छोर,

थाम कर इन्हीं यादों का हाथ।


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