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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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जरूरी तो नहीं

जरूरी तो नहीं

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जरूरी तो नहीं

कि हमारे हित में उठती हुयी आवाजें एवं 

तदनुसार सक्रियता का प्रतिफल

हमारा हित ही हो।

वो भी आज के इस दौर में

जब हमारे हित की आड़ में,

हमारा सब कुछ छीन लेने का

सम्मोहक प्रयास 

हमारे चारों ओर सक्रिय हो।

पहचान का गहरा संकट है

और परिवर्तन का

मौलिक आधार ही

विवादित हो चला है।

फलत राजनीति ही नहीं

धर्म ही नहीं 

आपस के प्रेम मे़ंं भी

संशय का बोलबाला है।


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