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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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सहचरी

सहचरी

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प्रकृति हमारी सहचरी है

हर जरूरत इसने हमारी पूरी करी है

हरे भरे पेड़ों की ठंडी छाँव 

स्वच्छंद बहती सुंगधित हवा


अठखेलियां करतीं हुई गिलहरियां

कलरव का स्वर पंछियों का

कल कल बहती हुई नदियां

ऐसा स्वर्ग सा नजारा


मिलेगा कहां और सोचो ज़रा

कल्पना से भी सुंदर है यथार्थ यहां

बनाओ सहचरी अपनी प्रकृति को ज़रा।


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