STORYMIRROR

Sheetal Jain

Abstract

4  

Sheetal Jain

Abstract

अस्त व्यस्त

अस्त व्यस्त

1 min
235

रात्रि का एक प्रहर कुछ दोस्त संग बैठे 

दावत उड़ा रहे 

 मस्ती के क्षण बिता रहे 

भाँति भाँति पकवान ,पेय पदार्थ 

चाँदी के बर्तनों में सज

मेज़ की शोभा बढ़ा रहे 

कहते है आभिजात्य हम

इस तरह अपनी शान दिखा रहे।

 

भूल जाते चिंतन मनन

मद्यपान कर हम

क्षणिक सुख के लिए 

नैतिकता दाँव पर लगा रहे

दोष हम नई पीढ़ी को देते 

आधार हम ही बना रहे 


आधुनिकता की आढ में 

यू भा्ंति फैला रहे 

स्थिरता जब लाओगे 

समझोगे यह तो बस दिखावा है 

नहीं तो भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में 

जीवन भी मेज़ की तरह

अस्त व्यस्त हो जाना है ॥


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract