पत्थर का शहर
पत्थर का शहर
मैं पत्थर के शहर में
मैं पत्थर के शहर में, कहाँ चला आया,
भीड़ में रहकर भी, खुद को अकेला पाया !
मैं पत्थर के शहर में . . .
दिलों में प्यार ना जज़्बात, नांहि हमदर्दी,
खून के कतरे को ही, खून से जुदा पाया !
मैं पत्थर के शहर में . . .
मैंने देखें हैं यहाँ, हाड़-मांस के पुतले,
जिनमें धड़कन के सिवा, लाग ना अक़ीदा पाया !
मैं पत्थर के शहर में . . .
यहाँ जीता है मरता है, कौन किस के लिये,
जिसे देखा उसे, दौलत पे ही, फ़िदा पाया !
मैं पत्थर के शहर में . . .
कौन होगा जो करे, तार-तार जाये-रिश्ते,
मैंने अपनों को यहाँ, अपनों का दुश्मन पाया !
मैं पत्थर के शहर में . . .
मुझे दूर ले चल ऐसी जगह, मेरे मनवा,
जहाँ मुनि संतों ने, भक्ति प्रेम से रब को पाया !
मै पत्थर के शहर में
