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Minal Aggarwal

Abstract

4  

Minal Aggarwal

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मानसून की होली

मानसून की होली

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वर्षा ऋतु 

अब तुम हवाओं के साथ बहती हुई 

अपने घर से बाहर निकलो और 

हमारे घर आंगन में आ जाओ 

हमारे मकानों की 

इमारतों की 

घरों की छतों पर बरस जाओ 


सूखी और प्यासी धरती को गीला कर 

इसकी प्यास बुझा दो और 

साथ साथ मेरी भी 

इसकी भी 

उसकी भी 

हम सबकी 

हम सब धरतीवासियों की 

तुम बरसोगी छम छम जो आसमान से तो 

गर्मी की आग कुछ तो बुझेगी 


बदन में ठंडक कुछ तो प्रवेश पा सकेगी 

बारिश होगी तो 

कोयल कूकेगी 

मोर नाचेंगे 

फूल पत्तियों के रंग निखरेंगे 

बारिश के पानी में नहाकर 

वह धुल जायेंगे और 

चमक उठेंगे 


बारिश की बरसती तेज बूंदों की 

बौछारों में 

मैं भी खुद को भीगो लूंगी 

एक कागज की कश्ती बनाकर 

उसे बरसात के पानीयों में चला लूंगी 

यूं अपने बचपन को याद कर लूंगी और 

यौवन के दिनों को भी 


लहरा लूंगी मैं खेतों में लहराती 

फसलों के साथ

पगडंडियों पर न भागूंगी

हौले हौले कदमों से आगे बढ़ूंगी 

फिसल गई तो चोट जो लगेगी 

उसको भी सह लूंगी 


बारिश का मजा तो पर मैं 

भरपूर लूंगी 

बारिश में खुद भी 

भीगूंगी 

जो कोई दिख गया 

मेरी पकड़ में आ गया तो 

उसे भी अपने संग खींच लूंगी और 


पानी की पिचकारी उस पर 

मारकर 

मानसून की होली उसके संग 

खेल लूंगी।


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