STORYMIRROR

मिली साहा

Abstract

4.8  

मिली साहा

Abstract

नभ में सज रहा पूनम का चाँद

नभ में सज रहा पूनम का चाँद

1 min
365


नभ में सज रहा पूनम का चाँद

समस्त कला बिखेरकर

बलखाती हुई रात आई आज 

चाँदनी की चादर ओढ़कर।।


अद्वितीय छटा है चाँद की

प्रकृति रूप का कर रही श्रृंगार 

जल में, थल में, नभ में फिज़ाओं में 

मानो लगा स्वर्ण का भंडार।।


आनंदविभोर हो जाए मन

देखकर प्रकृति की अद्भुत आभा

पूनम के चाँद में रंगकर झूम रहा

धरती का कण-कण सारा।।


जिसे देख लेखकों की कलम चले

कवियों का हो मधुर गान

तन मन को शीतल करे 

खूबसूरती की यह बनी पहचान।।


कितनी कल्पनाएँ, कितने एहसास

बुन रहे पूनम के चाँद के साथ

चकोर भी मंत्रमुग्ध हो निहार रहा

काश! आसमां से आए चाँद मेरे पास।।


खूबसूरत सी इस अनोखी बेला में

किसी को है किसी का इंतजार

तो कोई यादों की चादर ओढ़कर

पूनम की रात में जी रहा अपना प्यार।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract