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मिली साहा

Abstract

4.8  

मिली साहा

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नभ में सज रहा पूनम का चाँद

नभ में सज रहा पूनम का चाँद

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नभ में सज रहा पूनम का चाँद

समस्त कला बिखेरकर

बलखाती हुई रात आई आज 

चाँदनी की चादर ओढ़कर।।


अद्वितीय छटा है चाँद की

प्रकृति रूप का कर रही श्रृंगार 

जल में, थल में, नभ में फिज़ाओं में 

मानो लगा स्वर्ण का भंडार।।


आनंदविभोर हो जाए मन

देखकर प्रकृति की अद्भुत आभा

पूनम के चाँद में रंगकर झूम रहा

धरती का कण-कण सारा।।


जिसे देख लेखकों की कलम चले

कवियों का हो मधुर गान

तन मन को शीतल करे 

खूबसूरती की यह बनी पहचान।।


कितनी कल्पनाएँ, कितने एहसास

बुन रहे पूनम के चाँद के साथ

चकोर भी मंत्रमुग्ध हो निहार रहा

काश! आसमां से आए चाँद मेरे पास।।


खूबसूरत सी इस अनोखी बेला में

किसी को है किसी का इंतजार

तो कोई यादों की चादर ओढ़कर

पूनम की रात में जी रहा अपना प्यार।।



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