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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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सावन के झूले फिर वापस आए

सावन के झूले फिर वापस आए

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सावन के झूलों के मौसम वापस आए,

फूल खिले बागों में मन झूम झूम गाए।


आसमान में छाई सतरंगी इंद्रधनुष के रंगों की बहार,

सावन का आगमन हुआ धरा पर, मन सबका हर्षाए।


मोती सी रिमझिम बारिश की बूंदे जब बादल लेकर आए,

ओढ़ कर हरी-हरी चुनरिया देखो वसुंधरा भी कैसे इतराए।


उमंग के झूलों में सराबोर प्रकृति मन को भीगो जाए,

सावन के आने की महक से ही मन हरा भरा हो जाए।


हरी हरी चूड़ियों की खनक, भीनी भीनी मेहंदी की खुशबू,

चारों ओर फैली हरियाली, मानों सावन के गीत गुनगुनाए।


त्योहारों की बहार और गौरीशंकर के आशीर्वाद से,

धरती का रोम-रोम आनंदित और भक्तिमय हो जाए।


पेड़ की शाखाओं पर पड़े झूले, खुशियों से भीगा घर आंगन,

अमृत बूंद पिलाकर प्रकृति को, सावन ने दिया है नवजीवन।


खिल उठी हैं कलियांँ बागों में, लगी रंग बिरंगे फूलों की कतार,

सावन के हरियाली तीज पे खिले सुहागिनों का सोलह श्रृंगार।


गुनगुन करते गुनगुनाते भंवरे, फूलों के संग गाए गीत मल्हार,

भाई-बहन के अटूट प्रेम को महकाए सावन राखी का त्यौहार।


सावन की फूहार मस्ती,भोलेनाथ की भक्ति, झूम उठा संसार,

लग गई झूलों की कतारें खुशियों का सावन आया हमारे द्वार।


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