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Dr. Poonam Gujrani

Abstract

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Dr. Poonam Gujrani

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चिट्ठी

चिट्ठी

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चलो फिर से 

एक चिट्ठी लिखी जाये

शब्द शब्द में 

धोल दी जाये

प्रेम की मिठास

थोड़ा हास, परिहास

दिल का हाल

निःसंकोच सुनाया जाये

चलो फिर से

एक चिट्ठी लिखी जाये।


नील गगन से कागज पर

धरकर दर्द की दौलत

अल्फाजों में

आंखों से बरसते सावन को

छुपाकर रुमाल में 

सलीके से एक गुलाब

उगाया जाये

चलो फिर से

एक चिट्ठी लिखी जाये।


बीत गये किस्सों को

फिसल गये रिश्तों को

छूट गये अपनों को 

टूट गये सपनों को

फिर से संभाला जाये

चलो फिर से

एक चिट्ठी लिखी जाये।


चलो बुहार दें खामोशी

स्थापित करें

सम्बन्धों के शहर

कायम रहे 

संवादों के पुल

अपनेपन की गीली माटी में

 प्रेम की पौध उग आये

 चलो फिर से

 एक चिट्ठी लिखी जाये।


सिरहाने रखकर जिसे 

सो सकें चैन की नींद

देख सकें बेखौफ

मासूमियत से भरे सपने

पी सके जी भरकर अमृत

होंठों पर बस 

एक मुस्कान थिरक जाये

चलो फिर से

एक चिट्ठी लिखी जाये।



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