पुस्तक ....या शस्त्र ....
पुस्तक ....या शस्त्र ....
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पुस्तकों के पन्ने पलटते हुए
अपने आप उतरने लगती शांति
मुस्कुराने लगते हैं होंठ
ईश्वर को अस्वीकार करने वाला व्यक्ति भी
हो जाता है अध्यात्मिक
खुद ब खुद...।
इसके ठीक विपरीत
परमाणु परीक्षण और
शस्त्र निर्माण में लगे लोग
कालिख पोत देते हैं
मानवता के चेहरे पर
सृष्टि को झोंक देते हैं
विनाश के मार्ग पर....।
पुस्तक....या शस्त्र ....
शांति ....या अशांति ....
विकास.... या विनाश....
तय करेगा हमारा चुनाव....।