कोहरे वाली शाम
कोहरे वाली शाम
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राम राम जपता है राही
उतरी कोहरे वाली शाम।
सर-सर करती हवा चली है
किट-किट करते दांत बजे
हाथ छुपे पॉकेट के भीतर
टोपी-मफ़लर भाल सजे
नुक्कड़ पर जल गया अलाव
मन भी मांग रहा विश्राम
उतरी कोहरे वाली शाम।
धरा-गगन का भेद मिटा है
चांद छुपा बादल की छांव
दृष्टिहीन लग रहा मुसाफिर
थमे हुए पहियों के पांव
लिए रजाई जमी है महफ़िल
छलक रहे यादों के जाम
उतरी कोहरे वाली शाम।
खुशबू से बाजार सजा है
दूध जलेबी चाट चटोरी
बांह पकड़ कर घूम रहे हैं
इसका छोरा उसकी छोरी
प्रेम ग्रंथ में खोए कमरे
जागे ग़ालिब और खैयाम
उतरी कोहरे वाली शाम।