दोहे
दोहे
मंजिल जिसकी आंख में, जाता सब कुछ भूल।
कंटकों की शैया भी , हो जाती मक़बूल।।
बाधाओं को चीरकर, जो लेते जग जीत।
हौसलों की दास्तान, लिखती जीवन रीत।।
मंजिल जिसकी आंख में, जाता सब कुछ भूल।
कंटकों की शैया भी , हो जाती मक़बूल।।
बाधाओं को चीरकर, जो लेते जग जीत।
हौसलों की दास्तान, लिखती जीवन रीत।।