नवगीत कहां रहीम का पानी
नवगीत कहां रहीम का पानी
मूंह छुपाए क्यों बैठी है
कबीरा तेरी बानी
मोती मानस चून न निपजा
कहां रहीम का पानी।
कुर्सी की सारी माया है
धन,दौलत, हथकंडे
बोटी-बोटी नोंच रहे हैं
संसद के सब पंडे
मूर्ख कोए बता रहे हैं
खुद को ज्ञानी ध्यानी
मोती मानस चून न निपजा
कहां रहीम का पानी।
हुई मुनादी जब मूल्यों की
चौराहे सब गरजे
गर्मागर्म बहस छिड़ी थी
चैनल पर सब बरसे
फांसी लगा रही उम्मीदें
सबको होगी हानी
मोती मानस चून न निपजा
कहां रहीम का पानी।
अंधा बहरा है सिंहासन
दिया तले अंधेरा
नैतिकता का मानचित्र पर
लगा हुआ है पहरा।
पलक झपकते खोटे सिक्के
रोये घर की रानी
मोती मानस चून न निपजा
कहां रहीम का पानी।