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सुरशक्ति गुप्ता

Abstract

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सुरशक्ति गुप्ता

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उम्मीदवार

उम्मीदवार

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खुले आकाश में हंसता घमंड,

जड़ बुद्धि को बनाता और अखंड।

रोती है विद्वता, सशक्त होती दानवता।

इस सुन्दर, अद्भुत,

अदृश्य तालमेल से बना समाज,

निरंकुशता के शासन में जमा जा रहा है।

साझेदारी की ओट में छिपता मनुष्य,

अपने ही बुने जाल में फंसता जा रहा है।


आज असंख्यों

में उद्वीप्त सागर की गहराई

उसे मापने आ रही है।

उसकी फटी हुई भौंहों का श्रृंगार

उसका नूतन अवशेष करेगा।

जो द्वार दर द्वार निहारेगा,

रुकेगा, छिटकेगा,

उद्गनता की धार में सबको

वह रौंदता हुआ चला जाएगा।

कटाक्ष है मेरा इस भयावह सृष्टि से, 

कोई नहीं...

हां हां अब कोई नहीं इसका उम्मीदवार बनेगा।।


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