क्यों ऐसे छुप छुप कर हम को सताते हो। क्यों ऐसे छुप छुप कर हम को सताते हो।
वह आता था उसे देखने बार बार उस बंद खिड़की की ओट से अपनी रश्मियों के संग .... || वह आता था उसे देखने बार बार उस बंद खिड़की की ओट से अपनी रश्मियों के संग .... ||
आज पहली मुलाक़ात ने ऐ कँवल होश तेरे उड़ाए तो मैं क्या करूँ। आज पहली मुलाक़ात ने ऐ कँवल होश तेरे उड़ाए तो मैं क्या करूँ।
कोई वस्तु नहीं है नारी , लाज़ की ओट में उसे जंजीरों से न नवाज़ा जाये , बल्कि सम्मान और विश्वाश के गहनो... कोई वस्तु नहीं है नारी , लाज़ की ओट में उसे जंजीरों से न नवाज़ा जाये , बल्कि सम्मा...
ज्वाला सी जान पड़ी अग्नि मशाल की, कौंधती चौंधती रोशनी सवाल की। ज्वाला सी जान पड़ी अग्नि मशाल की, कौंधती चौंधती रोशनी सवाल की।
है वो जानवरों से भी बदत्तर होते जानवर फिर भी बेहतर। है वो जानवरों से भी बदत्तर होते जानवर फिर भी बेहतर।