रोशनी सवाल की
रोशनी सवाल की
कौंधती चौंधती रोशनी सवाल की,
खींच के निकालती है खाल हर मिसाल की,
अंधेरे पर्दों में छुप रहा था बार बार,
पानी की ओट लिए दिख रहा था आर-पार,
बोल पड़े शब्द जो निशब्द थे, निढाल थे,
टूट गए बिंब जो पर्वत विशाल थे,
ज्वाला सी जान पड़ी अग्नि मशाल की,
कौंधती चौंधती रोशनी सवाल की।