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Rishi Rai

Abstract

4.5  

Rishi Rai

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बनारसी आनंद

बनारसी आनंद

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भोरे उठा, गंगा नहा,

बाबा के दर्शन जरूर करीहा,

त्रिपुंड लगा के, बोला हर हर महादेव,

तब आई आनंद।


घरे से बढ़िया तैइयार होके,

बाल बनाके, दाढ़ी बनाके,

पैंट पहिनके, बुशर्ट पहिनके, 

चमड़ा का चप्पल चमकावा गुरु,

मुहे में पान दबाके,गमछा झटक के, 

पैर पटक के चलीहा गुरु,

तब आई आनंद।


साइकिल का पैडल तनी जोरे मारके,

कचौड़ी सब्ज़ी आकंठ डकारके,

चाय के कुल्हड़ दोना में फेकिहा,

कंधा पर लटकल गमछा से मुंह पोछिहा,

तब आई आनंद।


लंका के लस्सी, 

अस्सी के चाय,

घाट पे घंटा बाजवा गुरु,

समोसा छने त गर्मे उड़वा,

छोला गिरावा, तनी चटनी गिरावा,

लौंगलता के जोरे से खींचा,

गुमटी से गुरु फिर चाय लड़ावा,

तब आई आनंद।


संझा के लाउटा त

लईकन के टाफी, अम्मा के पान,

बाबा के मीठा, आ भौजी के चाट, 

खियावा गुरु, खियावा गुरु,

तब आई आनंद।


राती के खाना में चावल बनी, 

दाल में घी, औ लोटा में पानी मिली,

प्यार मिली, दुलार मिली,

बिजली कटी त, कहानी सुनावा,

लाइकन के खटिया प, पंखा झुलावा

तब आई आनंद।


फिर ?

भोरे उठा, गंगा नहा,

बाबा के दर्शन जरूर करीहा,

त्रिपुंड लगा के, बोला हर हर महादेव,

तब आई आनंद, तब आई आनंद !


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