शोर
शोर
सूनी गलियाँ
शांत गलीचे,
खाली बगिया,
बेचैन बगीचे,
कभी शोर किया करते थे।
अब तो सिर्फ आवाज़
सुनाई पड़ती है,
आवाज़, शुन्यता की,
आवाज़, अपूर्णता की,
आवाज़, चहुँ ओर गूँजते सन्नाटे की।
बड़ी दूर निकल आए, लगता है,
बहुत कुछ छोड़ आए, लगता है,
कुछ आँखों में, इन्तज़ार होगा,
सामना फिर इक बार होगा।
सामने मैं हूँ,
या परछाईं है,
शायद, सत्य है,
छू कर देख लेता तो पता चलता,
केवल हम और अहम की लड़ाई है।
