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Mukesh Kumar Modi

Abstract Inspirational

4.6  

Mukesh Kumar Modi

Abstract Inspirational

विकारमुक्त जीवन

विकारमुक्त जीवन

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पांच विकारों की अग्नि में धधक रहा जग सारा

इन्हीं विकारों ने सबका छीन लिया है सुख सारा


फिर भी इन विकारों को हम कितना गले लगाते

विकारयुक्त आचरण द्वारा खुद को दुख पहुँचाते


क्यों हम बन गए इतना पांच विकारों के गुलाम

इसके परिणामों से क्यूँ होकर बैठ गए अनजान


मात्र क्षण भर का आक्रोश हत्या हमसे करवाता

सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त कर जेल में पहुँचाता


लोभ का कीड़ा एक बार मन में जब घुस जाता

लालच के गहरे दलदल में जीवन धंसता जाता


दैहिक रिश्तों के मोहवश व्याकुल जब हो जाते

बिछुड़ने वाले की याद में हम नींद नहीं ले पाते


जीवन का विनाश कर देता अहंकार का दानव

तन मन और धन से पूरा निर्बल हो जाता मानव


देवत्व नष्ट हो जाता काम विकार के वश होकर

होश ना ले पाता अपने चरित्र की नैया डुबो कर


उसका जीवन है बेमोल जो डूबा हो विकारों में

पाप कर्म होते रहेंगे प्रदूषण हो जब विचारों में


विकारों से दूषित जीवन बन जाता नर्क समान

ख़ुशियाँ रहती दूर दूर जीवन लगता है श्मशान


क्यों ना हम अपना विवेक झिंझोड़कर जगाएं

अपना सोया हुआ देवत्व खुद को याद दिलाएं


राम कृष्ण के श्रेष्ठ चरित्र को हर पल याद करें

उनके जैसे दैवी संस्कार अपने आचरण में भरें


देह नहीं मैं आत्मा हूँ कर लें ये सच्चाई स्वीकार

सबसे करते जाएं आत्मिक भाव से संव्यवहार


पांचों विकार त्यागकर हम निर्विकारी बन जाएं

आत्म शुद्धि करके अपना जीवन सुखी बनाएँ


*ॐ शांति*


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