बेटी "स्वप्न"
बेटी "स्वप्न"


मेरे पास शब्द
और शब्द से भरे भाव
जो कि देखते ही बेटी को
नाचते हुए दिखने लगते हैं,
नन्हे छोटे कदमो की तरह
जो कि बाद में उसी की तरह
एक कविता की सृजन करेंगी
मैं मेरे शब्द और भाव मिल,
जब भी देखते हैं बेटी को
तो देखते और देखते ही रहते हैं
उसके चेहरे की मासूमियत से,
कैसे खिलता है गुलाब
भरते है इंद्रधनुष अपने अंदर
साथ सात रंग, हाथों के स्पर्श से
उसके ही तुतलाहट शब्द से
रचे जाते है संगीत,
उसके हाथों के दश अंगुलियों पर
नाचते हो ये दश दिशा
उसके स्नेहिल आँखों से
देखना चाहता हूँ अनवरत
अवनी से आकाश, दिन और रात।