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Shyamm Jha

Abstract

4.8  

Shyamm Jha

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रात

रात

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जब रात घरों में

दिये कि लौ बढ़ती है

तो रात घनी और घनी हो जाती है 


पर अंधकार का क्या है?

वह तो सब कुछ छोड़ कर 

उजाले की तरफ बढ़ता है 

उस किरण की ओर, जो कि!

किसी स्ट्रीट लाइट, किसी पक्ष 

किसी दीप से नहीं आने वाली 


वह तो लौटना चाहती है

मिलना, घुलना चाहती है

उस गुलाबी मध्यमा आकाश में 

रात को चीरती हुई अलहभोर में

ताकि वह भी ज्योतिर्मय होकर 

अपने जीवन को सार्थक करें 


इस विराट और महाकाय दौर में

अहर्निश आशा की किरण लिए

डूबने के बाद यूँही उगने के लिए 

लिखने के लिए इस जगत को

एक नई कल्पना की परिभाषा।।


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