प्रेम रत्न
प्रेम रत्न


तू क्यों ढूंढे पट चित्र पर
तू मेरे दिल में रहती है
साँझ सवेरे मुखमंडल पर
कुसुमलता सी तू खिलती है
तू मेरी है राधा रानी
तू मेरी है प्रेम छवि
तुझे गूँथ के शब्दो में
मैं कहलाऊँ प्रेम कवि
क्या यमुना है क्या गङ्गा है
क्या निश्छल अमृत की धारा
तेरे मुख पर अब दिखती है
प्रियतम मुझको ये आभा
क्यों दिल में घण्टी बजती है
क्यों वीणा छनछन करती है
प्रियतम तुम यादों में आकर
क्यों मञ्जुल गायन करती हो
जब से तुझको जाना है
बस तुझको अपना माना है
तू अंदर है तू बाहर है
तू प्रेम की जैसी सागर है
उस सागर में मैं डूब के यूँ
बस प्रेम के मोती चुन लाऊं
और गलहार बन पी का यूँ
कामिनी अंग लिपट जाऊं
और गाए माधौ ! एक रटन
बस प्रेम रत्न बस प्रेम रत्न।।