गैलेक्सी प्रेम
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रात में ख्वाब था ख्वाब में रात थी
मैं था उसमें खोया वो थी मुझमें खोई
पल में ऐसा हुआ मन यूँ उड़ने लगा
कभी गाता हुआ गुनगुनाता हुआ
चीखता हुआ तो चिल्लाता हुआ
हँसता हुआ तो कभी रोता हुआ
उड़ के अंतरिक्ष से जाके टकरा गया
गिरने के डर से दोनों बाहें पकड़
प्रीत का चादर बनाके ओढ़ हम लिए
ख्वाब टूटा तो देखा कि हम थे कहीं
चाँदनी से सजी कुछ प्याली वहीं
मन भरने को उसको हम पीते गए
पी कर नशे में फिर कुछ गाने लगे
गानों पर पैर थिरक कर आगे बढ़ा
बढ़ के आगें बढ़ा और बढ़ता रहा
चंदा के पास तो सितारों के पार
सितारों के आगे जहाँ परियों तक
बेलौस रास्ता, वादियाँ पैमाइसों संग
आकाश गंगा के दूसरे फलक तक
बनाने को दिल से एक छोटा जगह
<p>जहाँ आकाशगंगा से सुबह नहा कर
घासों से टूटे तारे यूँ चुनकर था लाया
जिसको पीस कर के तुम हाथों पर
माधौ नाम की मेहंदी सजा रही थी
रक्तिम स्पाइरल गैलेक्सी लता को
पीस कर पावँ में आल्ता बना रही थी
तब तक सूर्य की लाली को छानकर
उठा लाया झट प्रीत से माँग भरने को
कलाइयों के वास्ते रंगीन रास्ते से
मङ्गल, बुध, शनि, शुक्र, गुरु ग्रहों को
चुनकर चूड़ियों का लटकन बाली
सप्त ऋषियों को एक संग पिरो कर
गलहार संग ध्रुव को टिका था बनाया
और इस तरह तुमको प्रियतम फिर
अपने ख्वाबों का दुल्हन बना रहा था
और इन सबके बदले मजुरी में तुम
अपना हाथ मेरे हाथ में यूँ रखते हुए
एक स्नेह सी हँसी जिन्दगी के लिए
मुझ पर हमेशा न्यौछावर कर रही थी।।