जिंदगी..!
जिंदगी..!
अच्छाई भी तुझ से हारी है ए जिंदगी...
पता नहीं मजबूरी है या लाचारी है..??
जीना भी है और जिंदा भी नहीं..!
सबसे भारी तो ये ज़िम्मेदारी है।
खुद से नाता तोड़कर,
गैरों से भी निभानी रिश्तेदारी है..!!
दिल लुटाकर, दर्द जुटाने की तैयारी है।
हर खता की कीमत है यहां नहीं चलती उधारी है..!
हर सांस पे एक सांस भारी है..!
सिलसिला इश्क का फिर भी जारी है..!!!
