वक़्त।
वक़्त।
आज बुरा है है कल अच्छा भी आयेगा
ये वक़्त है जनाब एक दिन बदल ही जाएगा
बदलना तो फितरत है वक़्त की
जब बदलेगा खेल नया ही रचेगा
चाहे कितना भी समेट लो
सब हाथों से फिसलेगा
रेत सी फितरत जो रखता है वो।
चाहे जितना भी लड़ लो है उससे से
कभी जीत ना पाओगे, हार ही जाओगे
कितना भी भाग लो उससे
उससे आगे जा ना पाओगे
कभी उसको हरा ना पाओगे।
लेकिन....
अगर जो तुम ठानोगे तो...
ये बाज़ी भी तुम पलटोगे
अपना वक़्त एक दिन लाओगे।
कदमों में सबकुछ और
मुट्ठी में ये दुनिया पाओगे।
