चंदामामा..!!
चंदामामा..!!
हर बच्चे को मिलते है अपने मामा
जब कहते है चंदामामा।
कभी लौरी बनके आते है और
स्वप्नलोक में ले जाते है
परीलोक की सैर करवाते है चंदामामा।
कोई शायर की ग़ज़ल हो या
हो सूफी के नगमे वो ही है सब में।
जशन-ए-इद हो या, हो करवा चौथ
नहीं होते बिना उसकी की दीद।
हर कोई ढूंढ़ता है अपने
महबूब के अक्ष को चांद में।
दूरियों के लम्हों में
पास होने का आहेसास जगाता है।
जब चांद घने बादलों में नज़र आता है
हटा के बादलों का पहरा।
मानों नज़र आया महबूब का चहेरा
तोड के घनी जुल्फों का पहेरा।
सबके दिल का हाल जानते है चंदामामा
पर कोई चांद के दिल का हाल तो जाने
चांदनी को चाहे या चकोर को !
चांद के सीने में भी आग है
यूं ही नहीं चांद पे दाग है।