उम्मीद एक नई रोशनी की...!!
उम्मीद एक नई रोशनी की...!!


देखो ये कैसा हलाहल सा अंधेरा छाया है...
पास होकर भी कोई अपना दिख नहीं रहा है।
क्या ये हालातों का असर है?
या है कोई अनहोनी के आसार..!!!
क्यों हुए है हम इतने लाचार..!!
हर तरफ क्यों है घोर अंधकार
दिख नहीं रहा है कोई पथ या कोई आकार।
घेरे हुए है हर ओर सुनकार और अंधकार।
ऊपर से दिख रहे है तूफानों के आसार...
कश्ती कैसे लगाऊं में पार?
कुछ देर चल के, थोड़ा संभल के...
सोचा खुद से बड़ा दुनिया में
कौन होगा साथिदार..!!
हूं में तैयार अब चाहे आ जाए तूफ़ान...
हो जब उम्मीद की पतवार
तो फिर कैसे ना होगी ये कश्ती पार..!!
मन की ज्योत जलाऊंगी
फिर कैसे ना दूर होंगे ये अंधकार।.!!