यामिनी
यामिनी
मैं खो जाना चाहता हूँ यामनी संग
जहाँ सुबह का इंतजार ना करना पड़े
क्योंकि मेरा दोस्त बन गया है अंधेरा
वो सर्वभौमिक समा लेती प्रकाश को
मुझे पंसन्द है यामिनी की संगीत
छिपकली और झींगुर के चलने की
चूहों के कुतरने और कुत्ते के रोने की
हवा में गुनगुनाते पत्तों की
जिसे सुनने श्मशान में सोए हैं लोग
साँपों की फुफकार सा लेता हूँ स्वास
मैं जुगनुओं के रोशनी से देखता हूँ भविष्य
कैसे स्वतंत्र भंगिमा में काटता है सफ़र
तारों की टिमटिमाते आंखों से
देखता हूँ अपने सारे हित मीत को
जो पंक्तिबद्ध खड़े है
रात का श्रृंगार करने को
जो मेरे से पहले चले गए थे
उस शून्य के महाब्रह्माण्ड में
मैं जानता हूँ जब होगा सवेरा
सूरज के रोश
नी में वह धूल जाएगी
मेरे दोस्त का घर सुनसान हो जाएगा
नहीं मिलेंगे एक भी पुरोहित
नहीं बजेगी कोई प्राकृतिक गीत
सब डरे सहमे छुपे रहेंगे अपने घर
जब तलक फिर रात नहीं होती
कब तक करेंगे लुका छुपी
सूरज और चन्द्रमा के संग
रात फिर दिन, फिर रात और दिन
जहाँ सूरज रात को धो देता है
वहीं चँदा रात को पोछ लेती है
और फिर जवान होती है रातें
लेकिन कौन जानता है
हर पंद्रह दिन पर भोगना पड़ता है
मासिक धर्म की पीड़ा
जहाँ कतरा कतरा शोणित
बह जाता है अवसान तक
जहाँ लड़ती है वह अकेली
संभालती है अपने आप को
लड़ने के लिए सुबह से
मैं भी उस पल यामिनी संग
खड़ा होना चाहता हूँ
लड़ना चाहता हूँ सुबह से
जो अपनी अकड़ में खो रखा है।।