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anju Singh

Fantasy

3  

anju Singh

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तारों की नुमाइश

तारों की नुमाइश

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रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता है।

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नहीं हूँ जो उबल पड़ता है

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता है

ना त-आरूफ़ ना त अल्लुक है मगर दिल अक्सर नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता है

उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है।



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