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anju Singh

Fantasy

4  

anju Singh

Fantasy

मंजिल

मंजिल

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मैं चल पड़ी हूँ 

उस मंजिल की और 

ना कोई ठिकाना है 

ना कोई उम्मीद है 

फिर भी थोड़ी सी 

जो हिम्मत हैं 


उसी के बल पर 

चल पड़ी हूँ 

एक ऐसी राह पर 

अकेली सी राह पर 

जिसकी कोई मंजिल नही 


पर बुलंद होने की आशा है 

कि आज नहीं तो कल 

कोई मंजिल मिले या ना मिले 

ये ज़रूरी तो नहीं 


पर ये एहसास और अफ़सोस

भी नहीं होगा कि 

हमने कोशिश नहीं की 

चल पड़ी हूँ मैं 

उस राह पर 

जिसका कोई ठिकाना नहीं।


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