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anju Singh

Fantasy

4  

anju Singh

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हैप्पी मकर संक्रांति

हैप्पी मकर संक्रांति

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मन पतंग बेचैन है, उड़ने को मजबूर !

जितना ढीलो डोर को, जाती उतनी दूर !


मन पतंग जीवन हुआ,रहे न दूर न पास !

मिल जाता है जो जहां,मिले वहीं उल्लास !


बिना पूंछ की उड़ रही, प्यारी एक पतंग !

निज बलबूते पर सदा, जीती उसने जंग !


बडे इरादे ठान कर, गगन उड़ी पतंग !

दोनों कन्नी से सदा,बिखरा देती रंग !


लंबी खींचे डोर को,जब भी उड़े पतंग !

नभ को छू कर आ गया,मनवा बादल संग !


सीधी सादी डोर में,उलझी रही पतंग !

एक कटी दूजी जुड़ी,देखे दुनिया दंग !


बहुत पतंगें उड़ रही, मंजिल है अति दूर ! 

डोर बराबर साथ है, चलने को मजबूर !


कागज की बनी पतंग !

रंग -बिरंगे उसके अंग !


दूर व्योम में उड़ती है !

इशारों पर वो लड़ती है !

खूब दांव-पेंच दिखलाती !

कटी जो, फिर हाथ न आती !


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