समय मेरे खिलाफ है या मैं समय के खिलाफ
समय मेरे खिलाफ है या मैं समय के खिलाफ
ये दौर ऐसा चल रहा है,
समझ ही नही आता,
समय मेरे खिलाफ है ,
या मैं समय के खिलाफ।
देखने मे तो यही लग रहा है
हम दोनो ही एक दूसरे के
खफा-खफा से चल रहे हैं
जब वो मेरे पर अपनी नाराजगी दूर करके आता है
तो मै उस से खफा सी हो जाती हूँ
और जब मै खुशी से उसे गले लगाती हूँ,
तो वो मेरे से खफा सा हो जाता है।
ना वो कम और ना मै कम
फिर हम दोनो की ये नाराजगी
कब खत्म होगी पता ही नही चलता
आज कल तो वो ही खफा सा है।
पर मैं मनाऊ कैसे
उस समय को वापस भी तो नही ला सकती
अब तो बस इंतजार है समय का
कि वो कब मेरे पर मेहबान होगा।
पहले इस दौर को हंसी-खुशी बिता लूं
फिर मना लूगी समय को
पर ये जो पल भर मे कही और निकल जाता है ना
इस पर गुस्सा तो आता है
फिर ये सोच कर खुश हो जाती हूँ
कोई नही आज नही तो कल तो मेरा होगा
हर पल हर समय एक सा थोडी रहता है,
तो ऐसे मे खफा होकर किसी से करना ही क्या है।
ये समय का दौर है यारो कब हाथ से निकल जाये पता नही किसी को
इसलिए हर पल हर समय खुश रहो और सबको खुश रखो
तो ये समय खुद अच्छा हो जाता है
अपनी नाराजगी दूर करके।
ये पल खुशी से जी लो यारो फिर कभी आये या ना आये।
