वो नन्हीं परी
वो नन्हीं परी
मेरे अनसुने, अनकहे ख्यालों में
देवलोक से इक नन्ही परी उत्तरी थी कल
मन में मची हलचल, थोड़ा-सा कोलाहल
मन में इक उठी जिज्ञासा ने झकझोरा
उत्सुकता के पंख फैलाकर पूछा मैंने उससे
किस लोक से आयी हो, किसकी है तलाश
पहले तो थोड़ा मुस्कुराई
फिर आँखें नम करके बोली नन्ही परी
क्या तुमने मुझे पहचाना नहीं
क्या याद नहीं तुमको ये मासूम चेहरा
याद करो, मैं तुम्हारी वही लाड़ली बिटिया
जिसे बिठाकर कन्धों पर, बाग़ में झुलाया
रात-रात भर जागकर लोरिया हैं सुनायी
कैसे भूल गए तुम अपनी गुड़िया को
आज भी तुम्हारी खामोशी में मेरी यादें हैं
मेरी अधूरी कुछ ख्वाहिशें हैं और कुछ
बिखरे हुए सपने, उनको ही लेने आयी हूँ
तुमको शायद याद नहीं, मैं बताती हूँ
पिछले जन्म में, मैं ही तुम्हारी जिद्दी बेटी थी
तुम थे मेरे प्यारे पिता, मगर एक दिन
कुदरत ने मुझे छीन लिया था तुमसे
जाते-कुछ खवाब के खिलोने
छोड़ गयी थी पास तुम्हारे
आज आयी हूँ यहाँ उनकी तलाश में
उसकी बातें सुनकर, मर भर आया
आँखों से अनायास ही आंसूं झरने लगे।
